क्या आप भी किसी प्रतियोगी परीक्षा या बोर्ड परीक्षा की तैयारी कर रहे हो? अगर आप कक्षा 12 के लिए वासुदेवशरण अग्रवाल का जीवन परिचय खोज रहे हो तो आप सही जगह पर आये हो। यह पोस्ट इसलिए लिखी गई है ताकि आप इस जीवन परिचय को याद करके बोर्ड एग्जाम में, हिंदी बिषय में अच्छे अंकोंप्राप्त कर सकें।
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इस पोस्ट में 2 तरह के जीवन परिचय हैं, संक्षिप्त जीवन परिचय और विस्तृत जीवन परिचय । संक्षिप्त परिचय को आप याद करने के बाद कम समय में दोहराने के लिए पढ़ सकते हैं और विस्तृत परिचय को आप बोर्ड परीक्षा में लिख सकते हैं ।
डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल जी का संक्षिप्त जीवन परिचय
डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल | भारतीय साहित्य और संस्कृति के गम्भीर अध्येता । |
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जन्म | सन् 1904 ई. । |
जन्म स्थान | लखनऊ (उ. प्र.) । |
उपाधि | पी. एच. डी. , डी. लिट्. |
मृत्यु | सन् 1967 ई. । |
मुख्य रचनाएँ | कल्पवृक्ष, पृथिवीपुत्र, भारत की एकता, माताभूमि आदि । |
वासुदेवशरण अग्रवाल जी का विस्तृत जीवन परिचय –
वासुदेवशरण अग्रवाल का जन्म सन् 1940 ई. में लखनऊ के एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में हुआ था। सन 1929 ईस्वी में लखनऊ विश्वविद्यालय से इन्होंने एम. ए. किया। तदनन्तर मथुरा के पुरातत्व संग्रहालय के अध्यक्ष पद पर रहे। सन् 1941 ई. में इन्होंने पी-एच. डी. तथा 1946 ई. में डी. लिट्. की उपाधियाँ प्राप्त कीं।
सन् 1946 ई. से 1951 ई. तक सेन्ट्रल एशियन एण्टिक्विटीज म्यूजियम के सुपरिटेण्डेण्ट और भारतीय पुरातत्व विभाग के अध्यक्ष पद का कार्य बड़ी प्रतिष्ठा और सफलतापूर्वक किया ।
सन् 1951 में यह काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ इण्डोलॉजी के प्रोफेसर नियुक्त हुए। लखनऊ विश्वविद्यालय के राधाकुमुद मुखर्जी व्याख्यान-निधि की ओर से व्याख्याता नियुक्त हुए थे। व्याख्यान का विषय ‘पाणिनि’ था।
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अग्रवाल जी भारतीय मुद्रा परिषद, भारतीय संग्रहालय परिषद तथा ऑल इंडिया ओरिएण्टल कांग्रेस, फाइन आर्ट सेक्शन मुंबई आदि संस्थाओं के सभापति पद पर भी रह चुके हैं। अग्रवाल जी ने पाली, संस्कृत अंग्रेजी आदि भाषाओं तथा प्राचीन भारतीय संस्कृति और पुरातत्व का गहन अध्ययन किया था। सन् 1967 ईस्वी में हिंदी के साहित्यकार का निधन हो गया।
साहित्यिक परिचय –
हिंदी साहित्य के इतिहास में ये अपनी मौलिकता, विचारशीलता और विद्वता के लिए चिर स्मरणीय रहेंगे | भारतीय संस्कृति पुरातत्व और प्राचीन इतिहास की ज्ञाता होने के कारण डॉ अग्रवाल के मन में भारतीय संस्कृति को वैज्ञानिक और अनुसंधान की दृष्टि से प्रकाश में लाने की इच्छा थी,
इन्होंने उत्कृष्ट कोटि के अनुसंधानात्मक निबन्धों की रचना की थी | निबंध के अतिरिक्त इन्होने संस्कृत, पालि, प्राकृत के अनेक ग्रंथों का संपादन किया | भारतीय साहित्य और संस्कृति के गंभीर अध्येता के रूप में इनका नाम देश के विद्वानों में अग्रणी है |
प्रमुख रचनाएँ –
कल्पवृक्ष, पृथ्वीपुत्र, भारत की एकता, माता भूमि इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं । इन्होंने वैदिक साहित्य, दर्शन पुराण और महाभारत पर अनेक गवेषणात्मक लेख लिखे हैं |जायसी कृत ‘पद्मावत’ की सजीवनी व्याख्या और बाणभट्ट के ‘हर्षचरित्र’ का सांस्कृतिक अध्ययन प्रस्तुत करके इन्होंने हिंदी साहित्य को गौरवान्वित किया है ।
इसके अतिरिक्त इनकी लिखी और सम्पादित पुस्तकों का सांस्कृतिक अध्ययन प्रस्तुत करके इन्होंने हिंदी साहित्य को गौरवान्वित किया इसकी और संपादित पुस्तक के हैं — उरूज्योति, कला और संस्कृति, भारतसावित्री, कादम्बरी, पोद्दार, अभिनंदन ग्रंथ आदि ।
भाषा –
इनकी भाषा विषयानुकूल, प्रौढ़ तथा परिमार्जित है । इनकी भाषा में देशज शब्दों का भी प्रयोग किया गया है । इनकी भाषा में उर्दू और अंग्रेजी के शब्दों, मुहावरों, कहावतों का अभाव दिखाई पड़ता है |
शैली –
इनकी मौलिक रचनाओं में संस्कृत की सामासिक शैली की प्रमुखता है तथा भाष्यों में व्यास शैली की प्रमुखता है | सामान्यतः इनके निबंध विचारात्मक शैली में ही लिखे गए हैं ।
अपने निबंधों में निर्णयों की पुष्टि के लिए उद्धरणों को प्रस्तुत करना इनका सहज स्वभाव रहा है | इसलिए उद्धरण-बहुलता इनकी निबंध-शैली की एक विशेषता बन गई है ।
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क्या सीखा –
विद्यार्थियों हिन्दी बिषय की इस शानदार पोस्ट में हमने अग्रवाल जी का जीवन परिचय पढ़ा, अगर आपको यह पोस्ट पसंद आयी और आपको भी लगता है की इस तरीके से लिखने से आपको परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त हो सकते हैं तो सबसे पहले इस पोस्ट को जल्दी से शेयर कर दीजिये । आप परीक्षा में कितने प्रतिशत अंक लाना चाहते हैं, कमेन्ट में जरूर बताइये । धन्यवाद..!
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Bhut achhe se jaankari di gayi h, aapka bhut bhut dhanyawad.