अर्थ सहित लिखी हुई मारवाड़ी कहावतें | Top 20+ Marwadi Kahawaten

क्या आपको भी मारवाड़ी कहावत सुनना पसंद है लेकिन, आपको अर्थ समझ नहीं आते हैं और आप उनके अर्थ भी जानना चाहते हैं तो, आप इस पोस्ट को जरूर पसंद करेंगे क्योंकि, आज हम आपके लिए ऐसी शानदार पोस्ट लाए हैं, जिसमें बहुत सारी मारवाड़ी कहावत लिखी हुई हैं और साथ ही में उनके अर्थ भी लिखे हुए हैं।

अर्थ सहित 20 राजस्थानी कहावतें –

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#1. आज ही मोडियो मूंड मुडाया अर आज ही ओळा पड्या।

अर्थ – आज ही बाबाजी ने सिर मुंडवाया और आज ही ओले पड़े।


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#2. चिड़ा-चिड़ी री कई लड़ाई, चाल चिड़ा मैँ थारे लारे आई।

अर्थ 🙂 चिड़िया व चिड़े की कैसी लड़ाई, चल चिड़ा मैं तेरे पीछे आती हूँ ।

भावार्थ 🙂 पति-पत्नी के बीच का मनमुटाव क्षणिक होता है।


#3. ठठैरे री मिन्नी खड़के सूं थोड़ाइं डरै!

अर्थ 🙂 ठठैरे ( जो की धातु की चद्दर की पीट -पीट कर बर्तन बनाता है ) के वहां रहने वाली बिल्ली खटखट करने से डरकर नहीं भागती क्योंकि वह तो सदा खटखट सुनती रहती है।

भावार्थ 🙂 किसी कठिन माहौल में रहने-जीने व्यक्ति के लिए वहां की कठिनाई आम बात होती हैं,वह उस परिस्तिथि से घबराता नहीं है।


#4. ब्यांव बिगाड़े दो जणा , के मूंजी के मेह, बो धेलो खरचे न’ई , वो दडादड देय !

अर्थ 🙂 विवाह को दो बातें ही बिगाड़ती है, कंजूस के कम पैसा खर्च करने से और बरसात के जोरदार पानी बरसा देने से ।

भावार्थ 🙂 काम को सुव्यवस्थित करने के लिए उचित खर्च करना जरुरी होता है,वहीँ प्रकृति का सहयोग भी आवश्यक है।


#5. चाए जित्ता पाळो , पाँख उगता ईँ उड़ ज्यासी।

अर्थ 🙂 पक्षी के बच्चे को कितने ही लाड़–प्यार से रखो,वह पंख लगते ही उड़ जाता है।

भावार्थ 🙂 हर जीव या वस्तु उचित समय आने पर अपनी प्रकृति के अनुसार आचरण अवश्य करते ही हैं।


#6. म्है भी राणी, तू भी राणी, कुण घालै चूल्हे में छाणी?

अर्थ 🙂 मैं भी रानी हूँ और तू भी रानी है तो फिर चूल्हे को जलाने के लिए उसमें कंडा/उपला कौन डाले ?

भावार्थ 🙂 अहम या घमण्ड के कारण कोई भी व्यक्ति अल्प महत्व का कार्य नहीं करना चाहता है।


#7. मढी सांकड़ी,मोड़ा घणा !

अर्थ 🙂 मठ छोटा है और साधु बहुत ज्यादा हैं।

भावार्थ 🙂 जगह/वस्तु अल्प मात्रा में है,परन्तु जगह/वस्तु के परिपेक्ष में उसके हिस्सेदार ज्यादा हैं ।


#8. कार्तिक की छांट बुरी , बाणिये की नाट बुरी, भाँया की आंट बुरी, राजा की डांट बुरी।

अर्थ 🙂 कार्तिक महीने की वर्षा बुरी , बनिए की मनाही , भाइयों की अनबन बुरी और राजा की डांट-डपट बुरी।


#9. आळस नींद किसान ने खोवे , चोर ने खोवे खांसी, टक्को ब्याज मूळ नै खोवे, रांड नै खोवे हांसी।

अर्थ 🙂 किसान को निद्रा व आलस्य नष्ट कर देता है , खांसी चोर का काम बिगाड़ देती है , ब्याज के लालच से मूल धन भी है डूब जाता है और हंसी मसखरी विधवा को बिगाड़ देती है।


#10. जाट र जाट, तेरै सिर पर खाट। मियां र मियां, तेरै सिर पर कोल्हू। ‘क तुक जँची कोनी। ‘क तुक भलांई ना जंचो , बोझ तो मरसी।

अर्थ 🙂एक मियाँ ने जाट से मजाक में कहा की जाट, तेरे सिर पर खाट। स्वभावतः जाट ने मियाँ से कहा की,मियाँ! तेरे सिर पर कोल्हू।मियाँ ने पुनः जाट से कहा की तुम्हारी तुकबंदी जँची नहीं तो जाट बोला की तुकबंदी भले ही न जँचे , लेकिन तुम्हारे सिर पर बोझ तो रहेगा ही।


#11. कुत्तो सो कुत्ते नै पाळे, कुत्तोँ सौ कुत्तोँ नै मारै। कुत्तो सो भैंण घर भाई, कुत्तोँ सो सासरे जवाँई। वो कुत्तो सैं में सिरदार, सुसरो फिरे जवाँई लार।

अर्थ 🙂 कुत्ते को पालना अथ्वा मारना दोनों ही बुरे है। यदि भाई अपनी बहन के घर और दामाद ससुराल में रहने लगे तो उनकी क़द्र भी कम होकर कुत्ते के समान हो जाती है। लेकिन यदि ससुर अपना पेट् भरने के लिए दामाद के पीछे लगा रहे तो वो सबसे गया गुजरा माना जाता है।


#12. झूठी शान, अधुरो ज्ञान, घर मे कांश, मिरच्यां री धांस…. *फोड़ा घणा घाले।*


#13. लाडू री कोर में कुण खारो,कुण मीठो?

शब्दार्थ – लड्डू की ग्रास में कौनसा भाग खारा और कौनसा भाग मीठा?

भावार्थ – बगैर पक्षपात के सभी के साथ समान व्यहवार करना, सबको एक समान मानना।


#14. नाई री जान में सैंग ठाकर।

शब्दार्थ – नाई की बारात में आये हुए सब लोग ठाकुर जाति के(उच्च कुल /जाति के) हैं।

भावार्थ – निर्बल या कम सक्षम व्यक्ति के हितार्थ काम में कोई भी सहयोग करने को राजी नहीं है।


#16. कनै कोडी कोनी, नांव किरोड़ीमल।

शब्दार्थ – स्वयं के पास में कौड़ी नहीं है लेकिन ऐसे व्यक्ति का नाम करोड़ीमल है।

भावार्थ – नाम या ख्याति के अनुरूप किसी के पास धन वैभव ना हो अथवा किसी जगह /वस्तु में नाम के अनुसार गुण न हो।


#17. आप मिलै सो दूध बराबर, मांग मिलै सो पाणी।

शब्दार्थ – जो स्वयं बिना मांगे मिले वह दूध के समान होता है और जो मांगने से मिले वह पानी के समान होता है।

भावार्थ – जो श्रम से अथवा सम्मान से अर्जित किया जाता है वो सुखद एवं कीर्ति बढ़ने वाला होता है और जो मांग कर,हट्ट करके लिया जाये निस्तेज और कमतर होता है।


लिखी हुई मारवाड़ी कहावतें, बकरा

#18. बकरा की माँ कित्ता थाव़र टाळसी।

शब्दार्थ – बकरे की माँ कितने शनिवार टाल सकती है।

भावार्थ – आसन्न विपत्ति को कुछ समय के लिए तो टाला जा सकता है,परन्तु समाप्त नहीं किया जा सकता है।


#19. आपरी खा’यर परायी तक्कै, जाय हड़मान बाबै’रे धक्कै।

शब्दार्थ – जो आदमी अपनी रोटी खाकर परायी को भी लेना चाहता है वह
हनुमानजी के धक्के चढ़ता है।

भावार्थ – जो स्वयं की मेहनत का फल पाने के बाद भी संतोष नहीं करता है और छल-कपट से दूसरे का हक छीनना चाहता है,उसको मुसीबत का सामना करना पड़ता है।


#20. धोबी के लाग्या चोर , डूब्या और इ और….

अर्थ – धोबी के यहाँ चोरी हुई तो तो दूसरे लोगों का ही नुकसान हुआ….
धोबी के यहाँ जो कपड़े धुलने आते है , वे दुसरो के ही होते है…

अंतिम शब्द –

दोस्तों इस पोस्ट में हमने पढ़ा, मारवाड़ी कहावत और उनके अर्थ, मुझे आशा है कि आपको यह पोस्ट जरूर पसंद आयी होगी। अगर आपको यह पोस्ट पसंद आयी हो तो, मुझे कमेंट में जरूर बतायें।

इनमें से कौन सी कहावत आपको काफी पसंद आती है या आप इसमें और कहावत जोड़ना चाहते हैं तो, आप हमे कमेंट के माध्यम से बता सकते हैं। इन कहावतों या इनके अर्थ को कॉपी करके आप अपने दोस्तों आदि के साथ शेयर कर सकते हैं।

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  1. कार्तिक की छांट बुरी , बाणिये की नाट बुरी, भाँया की आंट बुरी, राजा की डांट बुरी ।

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