विद्यार्थियों, आपका स्वागत है आज की हमारी एक और New Post में..! जैसा कि आपको पता होगा कि आपकी बोर्ड परीक्षा भी नजदीक आ चुकी है, इसलिए आज की इस पोस्ट में हम Jainendra Kumar Ji ka jeevan parichay पढ़ेंगे। ये जीवन परिचय आपकी बोर्ड-परीक्षा या प्रतियोगी परीक्षा की द्रष्टि से काफी महत्वपूर्ण है, इसलिये आपको इसे ध्यान से पढ़कर याद करना चाहिए।
पढ़ने से पहले देखें लेख की एक छोटी सी झलक
लेखक जैनेन्द्र कुमार का जीवन परिचय –
इस पोस्ट में हम इनके जीवन परिचय के साथ साथ इनके साहित्यिक परिचय के बारे में भी बात करेंगे | इसमें आपको 2 तरह के जीवन परिचय देखने को मिलेंगे, संक्षिप्त जीवन परिचय, विस्तृत जीवन परिचय! तो चलिये बिना किसी देरी के पढ़ना शुरू करते हैं —
जैनेन्द्र कुमार का संक्षिप्त परिचय –
नाम | जैनेन्द्र कुमार। |
जन्म | 1905 ई. में। |
जन्म स्थान | अलीगढ़ का कौड़ियागंज नामक कस्बा। |
मृत्यु | 24 दिसम्बर, 1988 ई०। |
प्रमुख रचनाएँ | प्रस्तुत प्रश्न, जड़ की बात, परख, फाँसी, ये और वे, |
भाषा | मूलतः चिंतन की भाषा। |
शैली | विचारात्मक, विवरणात्मक, रचनात्मक, भावात्मक, मनोविश्लेषणात्मक। |
विस्तृत जीवन परिचय –
प्रेमचन्दोत्तर युग के श्रेष्ठ कथाकार जैनेन्द्र जी का जन्म अलीगढ़ के कौड़ियागंज नामक कस्बे में सन् 1905 ई० में हुआ था। इनके बचपन का नाम आनंदीलाल था । बाल्यावस्था में ही इनके पिता की मृत्यु हो गयी।
इनका पालन-पोषण इनकी माता और मामा ने किया। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा हस्तिनापुर के जैन गुरुकुल ऋषि ब्रह्मचर्याश्रम में हुई। सन् 1919 में इन्होंने मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए इन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया,
किन्तु सन् 1921 के असहयोग आन्दोलन में भाग लेने की बजह से इन्होने पढ़ाई छोड़ दी और ये कांग्रेस के असहयोग आंदोलन में भाग लेने के लिये दिल्ली आ गए थे, जिससे इनकी शिक्षा का क्रम टूट गया | सन् 1921 ई० से 1923 ई0 के बीच इन्होंने अपनी माता की सहायता से व्यापार किया और उसमें सफलता प्राप्त की।
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सन् 1923 ई0 में ये नागपुर पहुँच गये और राजनीतिक पत्रों में संवाददाता के रूप में कार्य करने लगे। उसी समय इन्हें गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया जहाँ ये तीन माह तक रहे। इनमें स्वाध्याय की प्रवृत्ति छात्र-जीवन से ही थी।
जेल में स्वाध्याय के साथ ही इन्होंने साहित्य-सृजन का कार्य भी प्रारम्भ किया। इनकी पहली कहानी-‘खेल’ सन् 1928 ई0 में ‘विशाल भारत’ में प्रकाशित हुई थी। इसके बाद ये निरन्तर साहित्य-सृजन में प्रवृत्त रहे। 24 दिसम्बर, 1988 ई० को इनका देहावसान हो गया।
जैनेन्द्र कुमार की प्रमुख रचनाएँ
जैनेन्द्र जी ने कहानी, उपन्यास, निबंध, संस्मरण आदि अनेक गद्य-विधाओं को समृद्ध किया है। इनकी प्रमुख कृतियाँ निम्नांकित हैं –
निबंध संग्रह –
- प्रस्तुत प्रश्न
- जड़ की बात
- पूर्वोदय
- साहित्य का श्रेय और प्रेय
- मंथन
- सोच-विचार
- काम, प्रेम और परिवार
उपन्यास –
- परख
- सुनीता
- त्याग-पत्र
- कल्याणी
- विवर्त
- सुखदा
- व्यतीत
- जयवर्धन
- मुक्तिबोध
कहानियाँ –
- फाँसी
- जयसंधि
- वातायन
- नीलमदेश की राजकन्या
- एक रात
- दो चिड़ियाँ
- पाजेब (इन संग्रहों के बाद जैनेन्द्र की समस्त कहानियाँ दस भागों में प्रकाशित की गयी हैं।)
संस्मरण –
- ये और वे
अनुवाद –
- मन्दालिनी (नाटक)
- पाप और प्रकाश (नाटक)
- प्रेम में भगवान् (कहानी संग्रह)
उपर्युक्त रचनाओं के अतिरिक्त इन्होंने संपादन-कार्य भी किया है ।
जैनेन्द्र कुमार का साहित्यिक परिचय –
जैनेन्द्र जी की साहित्य-सेवा का क्षेत्र बहुत विस्तृत है। मौलिक कथाकार के रूप में तो इनकी विशेष पहचान है, निबन्धकार और विचारक के रूप में भी इन्होंने अद्भुत प्रतिभा दिखायी है। इन्होंने साहित्य, कला, धर्म, दर्शन, मनोविज्ञान, समाज, राष्ट्र आदि अनेक विषयों को लेकर निबंध-रचना की है।
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इनके निबंध चिन्तन-प्रधान और विचारात्मक हैं। इनका विचार करने का अपना ढंग है। कभी विषय को सीधे उठा लेना, कभी कुछ दूसरे प्रसंगों की चर्चा करते हुए मूल विषय पर आना, कभी मूल विषय के केन्द्रीय विचार-सूत्र की व्याख्या करते हुए विषय-विस्तार करना,
कभी किसी कथा-सन्दर्भ को प्रस्तुत करके उसके भीतर के विचार-सूत्र को निकालकर आगे बढ़ाना और कभी पाठकों को आमंत्रित करके उनके साथ बातचीत करते हुए एक परिचर्चा के रूप में प्रतिपाद्य विषय को प्रस्तुत करना, इनकी विचार-पद्धति की विविध भंगिमाएँ हैं ।
किसी भी प्रश्न पर विचार करते हुए ये उसके आंतरिक पक्ष को विशेष महत्व देते हैं | इसीलिए इनके निबंधों में दर्शन, मनोविज्ञान और अध्यात्म के शब्दों का प्रयोग अधिक हुआ है | विचार की निजी शैली के कारण ही इनके निबंधों में व्यक्तिनिष्ठता आ गई है ।
जैनेंद्र कुमार की भाषा शैली –
जैनेंद्र के निबंधों की भाषा मूलतः चिंतन की भाषा है । ये सोचा हुआ न लिखकर सोचते हुए लिखते हैं । इसीलिए इनके विचारों में कहीं कहीं उलझाव आ जाता है । इनकी विचारात्मक शैली में प्रश्न, उत्तर, तर्क, युक्ति, दृष्टांत आदि तत्वों का समावेश उसे गूढ़ता प्रदान करता है ।
शब्द-चयन में जैनेंद्र का दृष्टिकोण उदार है । ये सही बात को सही ढंग से उपयुक्त शब्दावली में कहना चाहते हैं । इनके लिए इन्हें चाहे अंग्रेजी के अंग्रेजी से शब्द लेना पड़े, चाहे उर्दू से, चाहे संस्कृत से तत्सम शब्दों का चयन करना पड़े, चाहे ठेठ घरेलू जीवन के शब्दों को ग्रहण करना हो,
इन्हें इसमें कोई संकोच नहीं होता । वस्तुतः जैनेंद्र की शैली इनके व्यक्तित्व का ही प्रतिरूप है । हिंदी साहित्य के विद्वानों के समक्ष ‘जैनेंद्र ऐसी उलझन है’ जो पहले से ही अधिक गूढ़ है |’ इनके व्यक्तित्व का यह सुलझा हुआ उलझावन इनकी शैली में भी लक्षित होता है।
अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए इन्होंने विचारात्मक, विवरणात्मक, रचनात्मक, भावात्मक, मनोविश्लेषणात्मक, आदि शैलियों का प्रयोग किया है ।
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निष्कर्ष –
इस पोस्ट में हमने जैनेन्द्र कुमार का जीवन परिचय पढ़ा । हमें लगता है की अगर आप इस तरह से परीक्षा में लिखकर आते हैं तो आपको अच्छे अंक मिलने की सम्भावना बढ़ जायेगी ।
अगर आपको इस परिचय में कोई कमी नजर आती है या आपका इस पोस्ट से सम्बन्धित सुझाव या विचार है तो, आप हमें कमेन्ट में बता सकते हैं।