सनातन धर्म में गंगा नदी और गंगा जल का बहुत महत्व है,(gangajal ko kaha kaha krte hai istemal) गंगाजल को धार्मिक पुस्तकों में पवित्र बताया गया है। वैसे देखा जाए तो इस बात में सच्चाई नजर भी आती है, क्योंकि गंगाजल को कई वर्षों तक स्टोर करने के बाद भी यह खराब नहीं होता है।
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है इसके अलावा यदि आप किसी भी पानी को किसी पत्र में भर कर रखे तो वह थोड़े दिन बाद ही दूषित होने लगता है। धर्म के काम में गंगाजल का काफी इस्तेमाल किया जाता है। पूजा सामग्री में सबसे शुद्ध चीजों को रखा जाता है, जिस कारण से हिन्दू गंगाजल को भी स्वच्छ और शुद्ध मानकर पूजा-पाठ में इस्तेमाल करते हैं।
धार्मिक पुस्तकों में इसके इस्तेमाल के जो नियम और कानून बताए गए हैं और उसका इस्तेमाल कब किया जाता है यह जानकारी हमने नीचे विस्तार से बताई है, इसे जरूर पढ़ें –
पूजा में किस तरह से करते हैं इसका इस्तेमाल –
चाहे किसी भी प्रकार की पूजा हो, पंडित जी उसमें गंगाजल का इस्तेमाल सर्वप्रथम करते हैं। कलश के अंदर भरे गंगाजल से पूजा में शुद्धिकरण मन्त्र जपते हुए गंगाजल को छिड़का जाता है। गंगाजल का इस्तेमाल करके भगवान की मूर्तियों को साफ भी किया जाता है।
चरणामृत में भी इस्तेमाल किया जाता है गंगाजल –
जब भी आप मंदिर जाते हैं तो पुजारी जी आपको चरणामृत नाम का एक तरल पदार्थ तुलसी के साथ देते हैं। आपको बता दें कि यह है कोई और पानी नहीं बल्कि गंगाजल ही होता है। बहुत सारे प्रमुख मंदिरों में मन्दिर जाने वाले प्रत्येक व्यक्ति को प्रसाद के रूप में चरणामृत मतलब थोड़ा सा गंगाजल दिया जाता है। इसी के साथ भगवान गंगाजल के साथ भगवान को भोग भी लगाया जाता है।
संकल्प के लिए भी इस्तेमाल होता है गंगाजल –
आपने पुरानी धार्मिक कहानियों में पढ़ा ही होगा कि हमारे ऋषि-मुनि जब भी कोई संकल्प करते थे तो, उसके लिए वह गंगाजल का इस्तेमाल ही करते थे। उसी की तरह आज भी किसी भी पूजा-पाठ के दौरान संकल्प लेने के के लिए हाथ में गंगाजल के अलावा कुछ अन्य चीजों के साथ संकल्प लिया जाता है। कहा जाता है कि साफ़ मन और साफ़ चीजों के साथ लिया गया संकल्प श्रेष्ठ होता है, इसलिए यहां भी गंगाजल को ही महत्व दिया जाता है।
शुद्धिकरण के लिए जरूरी होता है गंगाजल –
आपने देखा होगा कि गृह प्रवेश के समय भी नये घर में प्रवेश करने से पहले घर का शुद्धिकरण किया जाता है,(gangajal ko kaha kaha krte hai istemal) जिसमें पूरे घर में गंगाजल का छिड़काव करने के बाद ही रहना शुरू किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इससे घर शुद्ध हो जाता है। पूजा पाठ का कार्यक्रम भी जल छिड़काव के बाद ही किया जाता है।
शिवलिंग पर चढ़ाने के लिए इस्तेमाल –
सावन के पवित्र महीने में अथवा शिवरात्रि के दिन शिवभक्त, दूध, दही और अन्य चीजों के साथ गंगाजल आदि से शिवजी का अभिषेक करते हैं। भोले बाबा की पूजा में गंगाजल का इस्तेमाल बहुतायत से किया जाता है क्योंकि भगवान शंकर की जटा में भी गंगा विराजती है।
कांवड़ यात्रा में इस्तेमाल होता है यह जल-
हर वर्ष बड़ी संख्या में श्रद्धालु कावड़ लेने के लिए घर से निकलते हैं, इसके बाद वे कावड़ के साथ गंगाजल लेकर अपने घर आते हैं। इसमें वे गंगाजल भगवान शिव को भी अर्पित करते हैं। यह जल सावन के महीने में सबसे ज्यादा चढ़ाया जाता है। इस समय बड़ी संख्या में भीड़ भगवान शिव के दर्शन के लिए आती है और मांस मदिरा का सेवन भी इन दिनों में लोग नहीं करते हैं।
कहते हैं की गंगा मां को धरती पर लाने के लिए हमारे पूर्वजों ने बड़ी कठोर तपस्या की है, जिसके बाद पापनाशनी गंगा का धरती पर आगमन हुआ है। हर साल लोग बड़ी संख्या में गंगा स्नान के दिन इस नदी मेंस्नान करने के लिए दूर दूर से आते हैं, उनका मानना है की यहाँ स्नान करने से माता उनके सभी पापों को नष्ट कर देती है।
कभी न करें यह गलती –
कुछ लोग गंगाजल के रखरखाव या इस्तेमाल में बहुत गलती करते हैं,(gangajal ko kaha kaha krte hai istemal) इससे जल का अपमान होता है और आपको गंगाजल का सही लाभ प्राप्त नहीं होता है, इसलिए हमेशा ध्यान रखें की –
- गंगाजल जहाँ रखा हो, वह स्थान साफ़ हो।
- गंगाजल किसी धातु के वर्तन में हो, इसको प्लास्टिक की बोतल में न रखें।
- जिस जगह गंगाजल रखा जाए उस स्थान पर मांस-मदिरा का सेवन न करें।
- हाथ होने के बाद ही गंगाजल का इस्तेमाल करें।
- सबसे पहले गंगाजल के पात्र को प्रणाम करें, उसके बाद ही इस्तेमाल करें।
- गंगाजल को अंधेरे वाले स्थान पर न रखें तो अच्छा है।
Disclaimer – इस आर्टिकल में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य जानकारी के आधार पर लिखी गई हैं। HindiRaja.in इनकी सत्यता की पुष्टि नहीं करता है। इन बातों को फॉलो करने से पहले एक बार इस बिषय के जानकार से जानकारी जरूर लें।
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