शिवपुराण क्या बताता है शंकर जी के जन्म से जुड़ी बात, ज्यादातर लोग नहीं जाते यह रहस्य

ऐसा माना जाता है की सोमवार का दिन शंकर भगवान का दिन होता है। यदि इस दिन कोई प्राणी भगवान को सच्चे मन से पूजता है तो, उसे सभी पापों से मुक्ति मिलती है और जिंदगी का सबसे बड़ा धन यानी शांति प्राप्त होती है। व्यक्ति को यदि अपनी सारी मनोकामना पूर्ण करनी है तो, भगवान शिव ही हैं जो, आपको वो सब कुछ दे सकते हैं जो आपके भाग्य में भी न लिखा हो।

इसके लिए आपको प्रत्येक सोमवार को भगवान शंकर जी को प्रसन्न करने के लिए प्रातःकाल उठने के बाद शौच, स्नान आदि करके भगवान के चरणों में ध्यान लगाना चाहिए। वेद का कहना है कि जिसमें भी जन्म लिया है, वह एक न एक दिन जरूर मरेगा मतलब जो बना है, वह फना है।

वेदों का कहना है की ईश्वर अजन्मा, अप्रकट, निराकार, निर्गुण और निर्विकार हैं। अजन्मा का मतलब है की जिसका कभी जन्म न हुआ हो और जो भविष्य में भी जन्म नहीं लेगा। ईश्वर के बारे में कहा है, प्रकट मतलब जो किसी के गर्भ से उत्पन्न न होकर स्वयंभू प्रकट हो गया है और अप्रकट अर्थात जो स्वयंभू प्रकट भी नहीं है।

ईश्वर को वेदों ने निराकार बताया है मतलब जो किसी भी आकार का नहीं है, और निर्गुण का मतलब होता है, जिसमें किसी भी तरह का गुण न हो,, निर्विकार से अर्थ है की जो किसी भी तरह के विकार या दोष से मुक्त है।

यह सब जानने के बाद मन शांत होने को तैयार नहीं रहता है, इसमें शिव को लेकर भी अपने सवाल उमड़ पड़ते हैं की, शिव कौन हैं, क्या वे ईश्वर हैं? वे जब एक रूप में जन्मे उसके बाद ही तो उनका विवाह हुआ, तभी तो उनके द्वारा बहुत सारे राक्षसों को वरदान दिया गया और उनका अंत भी भगवान ने किया।

वास्तव में ‘शिव’ शब्द से हम निराकर ईश्वर की बात करते हैं। लेकिन जब हम ‘सदाशिव’ कहते हैं तो ईश्वर महान आत्मा की बात होती है इसी के साथ जब हम शंकरजी या महेश बुलाते हैं तो, वह सती अथवा पार्वती के पतिदेव महादेव की बात करती हैं।

भगवान शिवजी के जन्म से जुड़ी बात –

शंकरजी के जन्म के बारे में शिवपुराण का कहना है की सदाशिव-पराशक्ति अम्बिका से शंकरजी का जन्म हुआ। उस अम्बिका को प्रकृति, सर्वेश्वरी, त्रिदेवजननी (ब्रह्मा, विष्णु और महेश की माता), नित्या और मूल कारण के नाम से भी जाना जाता हैं।

सदाशिव ने जिस शक्ति को प्रकट किया उसकी, आठ भुजाएं बताई जाती हैं। वह देवी अस्त्र शक्ति धारण करे हुए है।उस सदाशिव के द्वारा दुर्गाजी को प्रकट किया गया। काशी के आनंदरूप वन में रमण करने के दौरान उन दोनों के मन में यह इच्छा प्रकट हुई कि किसी अन्य दूसरे पुरुष की सृष्टि करें जिसको सृष्टि के निर्माण का कार्यभार संभालकर हम निर्वाण धारण कर सकें।

जिसके बाद उनके द्वारा वामांग से भगवान विष्णु को प्रकट किया गया। इसलिए विष्णु भगवान के माता-पिता कालरूपी सदाशिव एवं पराशक्ति दुर्गा जी हैं। विष्णु को उत्पन्न करने के बाद सदाशिव और शक्ति ने पूर्ववत प्रयत्न करके ब्रह्माजी को अपने दाहिने अंग से उत्पन्न किया और तुरंत ही उन्हें विष्णु के नाभि कमल में डाल दिया। इस प्रकार उस कमल से पुत्र के रूप में हिरण्यगर्भ (ब्रह्मा) का जन्म हुआ. एक बार ब्रह्मा और विष्‍णु दोनों में सर्वोच्चता को लेकर लड़ाई हो गई, तो बीच में कालरूपी एक स्तंभ आकर खड़ा हो गया।

बहुत सारे लोगों को ‘शिव’ और शंकर जी के बीच का अंतर नहीं समझ पाते हैं उनको लगता है की ‘शिव’ का जन्म हुआ है जबकि, ‘शिव’ तो अजन्मा हैं। आशा करते हैं की आपको शंकर जी के जन्म और “शिव” के बारे में सही तरह से जानकारी हो गई होगी।

Disclaimer – इस पोस्ट में बताई जाने वाली जानकारियां और सूचनाएं मान्यताओं के आधार पर लिखी गई हैं। HindiRaja.in इनकी सत्यता की पुष्टि नहीं करता है। इनमें से किसी भी बात को फॉलो करने से पहले इस बिषय के जानकार से राय जरूर लें।

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