पराली जलाने से किसान हो रहे बीमार, गुर्दे, किडनी की बिमारी से जुड़ा बड़ा खुलासा

अभी तक सरकार के मना करने के बाद भी उत्तर भारत के राज्यों में पराली जलाने से किसान रूक नहीं रहे हैं। पराली और गन्ने के बचे हुए अवशेष को जलाने को लेकर कोलोराडो विश्वविद्यालय से जुड़े वैज्ञानिकों ने अपने नए अध्ययन में जानकारी दी की, इससे गुर्दे, किडनी से जुड़ी बिमारी फैल रही है। इस बिमारी का कारण ‘सिलिका’  है, यह पदार्थ पराली को जलाने पर निकलता है। 

जर्नल एनवायर्नमेंटल पॉल्यूशन की रिसर्च: इसका कहना है की जब पराली को जलाते हैं तो उससे बनने वाली राख में पाए जाने वाले ‘सिलिका’ के कण की बजह से इंसान बीमार हो जाता है। ये कण बहुत बारीक होते हैं, जो पराली के साथ-साथ गन्ने की कटाई के बाद बची पत्ती को जलाने पर भी निकलते हैं।

रिसर्च कहती है की सिलिका के ये महीन कण वातावरण में फैलने के बाद लोगों को बीमार करते हैं और इनका नुकसान सबसे पहले किसान को ही होता है को क्योंकि, आग जलने के वक्त किसान खेत पर ही मौजूद होता है। इसके बाद ये कण पानी और हवा के माध्यम से अन्य लोगों के गुर्दों में पहुँचकर गुर्दे से जुड़ी समस्या को बढ़ाने का काम करते हैं।

उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा और मध्य प्रदेश में पराली जलाने से वायु प्रदूषण काफी बढ़ रहा है, इसी के चलते यह खबर आई जो चौकाने वाली है।

गन्ने के अवशेष मत जलाना: गन्ने के तने में अस्सी प्रतिशत सिलिका मौजूद होता है, वैसे तो इसको जलाते नहीं हैं लेकिन, चीनी मील में जाने के बाद खेत में पत्ती के साथ जो बेकार हिस्सा बच जाता है, जब वह पत्ती के साथ जलता है तो लगभग दो सौ नैनोमीटर वाले आकर के सिलिका के बारीक कण गन्ना जलने से भी पैदा होते हैं।

वैज्ञानिक शोध: सिलिका से युक्त राख के ढाई माइक्रोग्राम प्रति मिलीलीटर के संपर्क में आने के 6-48 घंटों के अंदर माइटोकॉन्ड्रियल गतिविधियों और कोशिकाओं के कार्यों पर प्रभाव दिखने लगा था। सम्पर्क में आने के लगभग 6 घंटों के भीतर ही यह कोशिका को प्रभावित करना शुरू करता है।

शायद यही कारण है की भारत, श्री लंका और इसके अलावा अन्य कृषि प्रधान देशों में लोगों को गुर्दे की बिमारी होना एक आम बात हो गई है। इससे पता चलता है की रिसर्च में कितनी ज्यादा सच्चाई है।

यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो द्वारा शोध में ‘जेरेड ब्राउन’, जोकि इस अध्ययन में वरिष्ठ शोधकर्ता हैं उनका कहना है की यह पहला अध्यन है जिसमें गुर्दों और ऊतकों में नुकसान करने वाले पदार्थ का पता लगाया गया है। ‘अल साल्वाडोर’ में 1 अस्पताल के डॉक्टरों के साथ मिलकर शोधकर्ताओं द्वारा किए शोध में पाया की अन्य किडनी-रोगियों की तुलना में इस रहस्यमयी बीमारी से ग्रस्त मरीजों के गुर्दों और ऊतकों में ज्यादा मात्रा में सिलिका के कण हैं।

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